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श्री आदिनाथजिन-पूजन (चाँदखेड़ी) (रचयिता - रूपचन्द जैन)
नाभिराय मरुदेवी के नन्दन, हो अतिशय के धारी। कैलाश शैल से मोक्ष पधारे, जन-जन-मंगलकारी।। संवत् पाँच सौ बारह में हुई, प्रतिष्ठा शिवपद-धारी। बारापाटी से आन विराजे, चाँदखेड़ी अविकारी।।
जाना था सांगोद गए नहीं, बैल जुड़े थे भारी। किशनदास लाए कोटा के, थे दीवान सरकारी।। आह्वानन करता हूँ प्रभु का, जय-जय अतिशयधारी।
अत्र-अत्र, तिष्ठ-तिष्ठ, सन्निधिकरण सुखकारी।। ॐ ह्रीं अनिष्ट-निवारक श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर-अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं अनिष्ट-निवारक श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ही अनिष्ट-निवारक श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक भव-भव में जल पीते-पीते, अब तक तृष्णा ना शान्त हुई।
मुनि मन सम जल से पूजूं, मन में इच्छा आज हुई।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ।
तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
तन-धन-जन की चाह-दाह, भव-भव में भ्रमण कराती है।
चन्दन से पूजन कर मन में शीतलता छा जाती है।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ।
तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय संसारताप- विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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