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बहुत विरोधी होने पर भी, दिया उच्च आसन अच्छा ॥४॥ जो भी आते द्वार आपके, मन वांछित फल पाते हैं। उभय लोक के वैभव पाकर, मुक्ति-रमा पा जाते हैं।। सो मिलकर हम भक्त पुकारें, टेर सुनो अब तो बाबा। सुव्रत धरकर तुमको गूंजे, अपने सम कर लो बाबा ॥ 9॥ दोहासद्-गुण के भण्डार हैं, वृषभनाथ भगवान । पूजा क्या? जयमाल क्या ? मैं बालक नादान ।। फिर भी श्रद्धावश किया, पूजन वा जयमाल उसका फल बस यह मिले, छूटे भव जंजाल । ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़ेबाबा अर्हं नमः जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूज्य बड़े बाबा करे, विश्वशान्ति कल्याण । प्राक जल की धार दे, हम पूजन भगवान ।।
कल्पवृक्ष के पुष्पसम, पुष्पांजलि पद लाय। सब कष्टों को मेट दो, वृषभनाथ जिनराय।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
. शांतिधारा
.पुष्पांजलिः
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