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फिर माघ कृष्ण चौदश को, प्रभु नाशे सब कर्मों को । तब पायो मोक्ष ठिकाना, हम पूजत शिवपद पाना ।। ॐ ह्रीं माघकृष्णा - चतुर्दश्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्री बड़ेबाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
जल सम शीतल शांत गुण, हम सब में भी आय।
जल धारा यूँ छोड़कर, पूजूँ प्रभु के पाय ।। (शांति धारा ) पुष्प समा शुचि गंध से, ज्ञान पुष्प खिल जाय। याते प्रभु पद पूजते, पुष्पांजलि चढ़ाय।। (दिव्य-पुष्पांजलिः) सोरठा
आदिनाथ भगवान, पूज्य बड़े बाबा रहे।
जपते इनका नाम,
शीघ्र सभी संकट टले ॥
जाप्य
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़े बाबा अर्हं नमः स्वाहा ।
जयमाला (शेर-छन्द) मध्यप्रदेश प्रांत में बुन्देलखण्ड है। और बुन्देलखण्ड में कुण्डलपूर है। कुण्डलपुर का पहाड़ तो यह कुण्डाकार है। इसी पहाड़ पे अनेकों जैन मंदिर हैं || 1 ||
तारे जैसे सारे मंदिर शोभते यहाँ। और बीच बाबा का यह मंदिर चन्द्र सा ।। अनेक भक्त यात्री यहाँ रोज आते हैं। बाबा के दरबार में ना जात-पात है || 2 || पहाड़ में से बड़े बाबा बाहर निकले हैं। मानों हमें मोक्ष को ले जाने आये हैं ।। कोई आदिनाथ कहे मेरे बाबा को ।
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