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नष्ट आठों कर्म हो अरु आठ गण शिव के मिले। यह अर्घ्य याते हम चढ़ाते पूजते प्रभु नाम ले।।
आदिम जिनेश्वर ये बड़ेबाबा इन्हें जो पूजते।
वे शीघ्र मनवांछित सभी फल पाय शिवपद पावते।। ॐ ह्रीं श्री बड़ेबाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक (पाईता छंद) आषाढ़ वदि द्वितीय को, सर्वार्थसिद्धि सुख त्याग्यो। मरुदेवी के गर्भ में आये, प्रभु पूजत शिवसुख पाये।। ऊँ ह्रीं आषाढ़-कृष्णा द्वितीयायां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्री बड़ेबाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ चैत्रकृष्णा नौमी था, तब जन्म हुआ बाबा का। थे धन्य अयोध्या-वासी, हम पूजें सुख-अभिलाषी।।
ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्री बड़ेबाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
था चैत्रकृष्ण नौमी वो, जब धारे प्रभु दीक्षा को। प्रभु किये तपस्या भारी, हम पूजत पाप-निवारी।।
ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्री बड़ेबाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
एकादश फागुन वदि को, प्रभु नाशे विधि घाती को। ___ हुये बाबा केवल ज्ञानी, हम पूज बने स्वज्ञानी।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्री बडेबाबा आदिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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