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जय पूज्य प्रतार सदा सुथरा, प्रगठी चहुँ ओर प्रशस्त गिरा।।3।।
तनु सात सुहाथ विशाल नमों, कनकाभ महा दशताल नमों। शुभमूरति मो मन मांहि वसी, सिगरी तब ते भव-भ्रान्ति नसी।।4।।
जय क्रोध-दवानल-मेह नमों, जय त्याग करो जग नेह नमों। जय अम्बर छांडि दिगम्बर भये, गति अम्मर की धरि अम्मर भये।।5।।
जय धारक पंच-कल्याण नमों, जय रोज नमें गुणवान नमो। जय पाद गहे गणराज रहें शचि-नायक सो मुहताज रहें।।6।। जय भव-दधि-तारन-सेत नमों, जय जन्म उधारन हेत नमों। जय मूरति नाथ भल दरसी, करुणामय शान्ति क्षपाकरसी।।7।।
जय सार्थक नाम सुवीर नमों, जय धर्म धुरन्धर धीर नमों। जय ध्यान महान तुरी चढ़ के, शिव खेत लियो अति ही बढि के।।8।
जय पार न वार अपार नमों, जय मान बिना निरधार नमों। जय रूप रमाधर तो कथनी, कथि पार न पावत नाग-धनी।।9।।
जय देव महा-कृतकृत्य नमों, जय जीव उधारन व्रत्य नमों। जय अस्त्र बिना सब लोक जई, ममता तुमतें प्रभु दूर गई।।10।।
जय केवल-लब्धि नवीन नमों, सब वातन में परवीन नमों। जय आत्म्-महा-रस पीवन हो, तुम जीवन मूरत जीवन हो।।11।।
जय तारन देव सिपारस मो, सुनि ले चित दे इह वारस मो। दुख-दूषित मो मन की मनसा, नहिं होत अराम इकौ झिन सा।।12।।
तकि तो पद भेषज नाथ भले, तुम पास गरीब नि बाज चले। मन की मनसा सब पूरन को, तुम ही इहि लायक दूज न को।।13।।
इहि कारज के तुम कारण हो, चित लाय सुनो तुम तारण हो। जग-जीवन के रखपाल भले, जय धन्य धन्य किरपाल मिले।।14।।
सब मो मन की मनसा पुजि है, अब और कुदेव नहीं सुझि है। सुझि है तुमरे गुन गावन की, बुझि है तृष्णा भरमावन की।।14।।
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