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चैत्र त्रयोदशि उजयारी, ता दिन जनमे प्रभाव विस्तारी।
अध्य महाकर धारी, जजत तिहारे चरण हितकारी।। ओं ह्रीं चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री वर्धमानजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दशमी अगहन वदिमें, लखि जगअथिर भये वैरागी।
प्रभू महाव्रत धारे, हम पूजत होय बढ़भागी।। ओं ह्रीं मगशिरकृष्णदश्म्यां तप कल्याणकप्राप्ताय श्री वर्धमानजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
केवलज्ञानी हवे, दशमी वैशाख सुदी के मांहीं।
सकल सुरासुर पूजे, हम इह पदलखि अध्य चढ़ाहीं।। ओं ह्रीं वैशखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री वर्धमानजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक नष्टकला दिन, पावापुर के गहन तें स्वामी।
मुकति तिया परनाई, हम चरण पूजि होत बढ़ नामी।। ओं ह्रीं कार्तिकामावस्यायां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री वर्धमानजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला - झूलना छन्द वीर-जिन धीरधर सिंह पग चिन्ह धर, तेज तप धरन जया शुर मारी। धर्म की धुराधर अखर विनु गिराधर, परमपद धरन जय मदनहारी।। दयाधर सीमांधर पंचवर नामधर, अमल छवि धरण जग शरमकारी। पंचापरावर्त की भर्मणा ध्वंसि के, अचलपद लहत जय जस विथारी।।
तोटक छन्द जय आनंद के घन वीर नामों, जय नाशक हो भव-भीर नमों। जय नाथ महासुखदायक हो, यमराज-विहंडन लायक हो।।1।।
जय चरमशरीर गंभीर नमों, जय चरम तीर्थंकर धीर नमों। जय लोक अलोक प्रकाशक हो, जन्मान्तर के दुख-नाशक हो।।2।।
जय कर्म-कुला-चल छेद नमों, जय मोह बिना निरखेद नमों।
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