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चम्पा कदम्ब मचकुन्द सुकुन्द केरे। लीये सुगन्धित प्रफुल्ति फूल हेरे।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
फेनी सुमोदक अनेक प्रकार नीके। मीठे अमान करि शुद्ध विहाय फीके।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
माणिक्य दीपक महान तमापहारी। दिक्चक्र सम्यक प्रकाशित तेजधारी।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
भू चक्र पूरित सुगन्ध सुधूप आनी। दाहूँ जिनाधिप पदाग्र महान जानी।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
द्राक्षा बदाम-शुभ आम्र कपित्थ लीये। नानाप्रकार भरि भार सुझाव कीये।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
पानी सुगन्ध वर अक्षत पुष्पमाला। नैवेद्य दीप अरु धूप फलौघ आला।। श्रीमल्लिनाथ जगदीश निशल्य कारी, पूजों सदा जजत इन्द्र सदेव धारी।। ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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