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जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।। विनाशनीय चक्रवर्ति, की विभूति त्याग के। भये सुधर्म चक्रवर्ति, आत्मपन्थ लागि के।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।। नमो नमों सदा आनन्द, कन्द तोहि ध्यावहीं। गणाधिपति जे अनन्त, मोक्ष-पन्थ पावहीं।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।।
अनंगरूप धारि मार, मर्दि मर्दि कर दियो। निरस्त के कुभाव भाव, शुद्ध आप में कियो।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।।
महान ज्ञानभानु सो, उदोत होत नाथ जू। विवेक नेत्रवान आप, जानि भये सनाथ जू।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।। खगेश बाल पाद तो, सहाय होत जासु को। कहा करे महान काल, व्याल कृष्ण तासु को।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।। अनादिकर्म-काष्ठ जालि, बालि होत भये महा। प्रकाशवान लोक में, न दूसरो कहो कहा।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।।
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