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अनेक देव देखिया, न देव तो समान को लखा
न मैं कभी कहूँ अनन्त ज्ञानवान को।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।।
रहूँ विहाय नाथपाद, कौन ठौर जायके। कृपाल दीन जानि के, दयाल हो बनाय के।। जिनेन्द्र शान्तिनाथ की, सदा सहाय लीजिये, महान मोह अन्त के, अनन्त काल जीजिये।।
घत्ता
जो पढ़े अहर्निश शुद्ध यह, जयमाल शान्तिजिनेश की। ताके न धन की होय कमती, करे हास्य धनेश की।। पद पास लोटे रोज रानी, रति अवर की क्या चली। पुनि भोग दिवि के, भोग सुन्दर, वरे शिवरामा भली ओं ह्री श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
शार्दल विक्रीडित छन्द स्वामी शान्तिजिनेन्द्र के पद भले, जो पूजसी भाव से।
सो पासी अमलान पट्ट सततं, वैकुण्ठ में चाव से।। सम्यक्त्वादिक अष्ट शुद्ध गुण को, धारे भलीभांति सो। होसी लोकपती सहाय सबका, जोगी भने शान्ति सो।।
ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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