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जय अशरण को तुम शरण एक, सब लायक दायक शुभ-विवेक। जग-नायक मन-भायक सरूप, जय नमो नमो आनन्द-कूप।। जय तु-वारिधि वेला-निशेष, नहिं राखत आरति जानि लेश। दुति ऊपर वारो कोटि भानु, प्रभु नासत मिथ्या तम महानु।।
तुम नाम लेत करुणा-निधान, टूटत गाढ़े बन्धन महान। पवनाशन पग तल चापि लेत, विषम-स्थल जाको नित सुखेत।।
ऐरावत-सम अति क्रोधवान, सनमुख आवत दन्ती महान। वश होय तिहारे नामलेत, जय जय शुभ अतिशय के निकेत।
तुम नाम लक्ष जाते निधान, नहिं अग्नि करे दग्धायमान। पावे ठरा वटमारी न कोय, इह प्रभुता जानत सकल लोय।।
करुण कटाक्ष तनि करो हाल, जासों मैं होऊँ अति निहाल। वसु कर्म विगोऊँ निमिष-मात्र, जाऊँ निजपद तजि सकल-गात्र।। घत्ता- इह अनन्त भगवन्त तनी, सुन्दर जयमाला।
पढ़ि जाने जो कोय होय, गुणगण की गाला॥ सुनत धुनत अतिक्रोध बोध, पावे सुखकारी। जाय पढ़े ते मिलत सिद्धितिय, जो अतिपयारी।। ओं ह्री श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्म्यम्। सोरठा- हे अनन्त जिनराज, कलुष काट करिये जलद।
पूरण पुण्य समाज, जो सुख पावे जगतजन।।
ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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