________________
जयमाला
जय जय विजयासुत सकल जगत नुत, अष्ट-कर्म-च्युत जित मयना।।
गुण-सिन्धु तिहारे चरण निहारे, सफल हमारे भे नयना।। जो हती कालिमा कुगुरु लखन की, भाजि गई सो इक पलमा।।
पाई मैं साता नाशि असाता, शान्ति परी मो अन्तरमा।।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेद्र जिय जिनेन्द्र देव जू। पूलोमजापती करें, पदारविन्द सेव जू।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।
राग द्वेष नाशि के, भये सुवीतराग जू। मुक्ति-बल्लभा तनो, जगो महान भाग जू।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।। भूख प्यास जन्म रोग, जरा मृत्युरोग ना। खेद वेद भीति भव, हूँ अचम्भ सोग ना।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।। नींद मोह जाति लाभ, आदि दे नहीं मदा। वर्जित अरत्ति है गदा, अचन्ति भाव तो सदा। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।।
दोष नाशि के अदोष, देव तू प्रमान है। दोष-लीन देव जो, कुदेव के समान है।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।। पाय के कुदेव साथ, नाथ मैं महा भमो। लक्ष चार औ अशीति, योनि माँझ ही गमो।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।।
देख तो पदारविन्द, नाथ शुद्धि मो भई। जानि के कुदेव त्याग, रूप बुद्धि परनई।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।।
जो पदारविन्द नाथ, शीश पै नहीं वहे। बूड़ते समुद्र यान, छांडि पाहने गहे।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।। तो बिना न देव जीव, मोक्ष राह पावही। तो विवेक पाय और, को न देख पावही।। मान त्याग भाव तो, चरन्न में लगावहीं। सो अमान पूज्यमान, सिद्धि ठान जावहीं।।
तो प्रसाद नाथ पंगु, ला चढ़े पहार पै। जो चढ़े अचम्भ नाहिं, जीत लेय मार पै।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।।
327