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मूक बोले वैन मिष्ट, इष्टता धरे महा। तो प्रभाव सिद्धिनाथ, होय ना कहा कहा।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।।
रेणुका पदारविन्द, की महा-पुनीत सो। सीस पै धरै सुधार, होत है अभीत सो।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। मो तने निहारि आप, में मिलाय लीजिये।। भे भवाब्धि पार जे, निहारि रूप तो तनो। मनरंगलाल को प्रभो, सदा सहाय तू बनो।। दीनबन्धु दीन के, सम्हारि काज कीजिये। तो तने निहारी आप, में मिलाय लीजिये।।
घत्ता
वासुपूज्य जिनराज, प्रभू की शुभ जयमाला। करम तनों ऋण हरण, काज वरनी सुखशाला। पढ़त सुनत बुधि बढ़त, नशत दारिद दुखदाई, जस उमड़त दश दिशा, धरम सों होत मिताई।। ओं ह्री श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
वासु-पूज्य महाराज, तुव पदनख अति चन्द्रद्युति। निज निज साधो काज, जासु चन्द्रिका में सकल।
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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