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पंचकल्याणक -छन्द काव्य आषाढ वदी छठि गाई, जिन गर्भ रहे सुखदाई। हम गर्भ दिना लखि सारा, ले अध्य जजें हितकारा।।
ओं ह्रीं अषाढकृष्णषष्ठयां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वदि फाल्गुन चौदसि जानी, विजया ने जने सुखखानी। वह सूरति मो मन भाई, जजिये पद अध्य बनाई।। ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वदि फाल्गुन चौदसि दीक्षा, लीनी अपनी शुभ इच्छा। तब देवन जय जय किन्हीं, हम पूजन हैं गुण चीन्ही।। ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां दीक्षामहोत्सवमण्डिताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिन माघ सुदी दुतिया के, अपराह्न समय सुख जाके। उपजो पद केवल बेरा, पद पूजि लहो शिव डेरा।।
ओं ह्रीं माघशुक्लद्वितीयायां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चम्पापुर तें सुख-दानी, भादों सुदि चौदशि मानी। अविनाशी जाय कहाये, ले अध्य जजों गुण गाये।। ओं ह्रीं भाद्रपदशुक्लचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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