________________
वृन्दार कनक के फूला, बहु ल्याय धरों सुखमूला।।
पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई।। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
मधुरा पक्कान घनेरा, ले मोदक लाडू पेरा।।
पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई।। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
करि रत्नतनो शुभ दीयो, निज हाथन पै घरि लीयो।।
पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई।। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णागरु धूप मिलाई, दहिये शुभ ज्वाल मँगाई।।
पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई।। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
फल आम नारंगी केला, बादाम छुहार घनेरा।। __पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई।। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
ले आठों द्रव्य सुहाई, जल आदिक जे शुभ लाई।
पदपूजन करहुँ बनाई, जासों गति चार नसाई। ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अनध्यपदप्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
325