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नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। अग्नि के कुंड में वल्लभा रामकी। नाम तेरे बची सो सती काम की।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ठ-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। द्रौपदी चीर बाढ़ो तिहारी सही। देव जानी सबों में सुलज्जा रही।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। कुष्ठ राखो न श्रीपाल को जो महा। अब्धिसे काढ़ लीनो सिताबी तहाँ।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। अंजना काटि फांसी गिरो जो हतो। औ सहाई तहाँ तो बिना को हतौ।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
शैल फूटो गिरौ अंजनी पूत के। चोट जाके लगी ना तिहारै तके। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। कूदियो शीघ्र ही नाम तो गायके। कृष्ण काली नथो कुंड में जाय के।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
पाँडवा जे घिरे थे, लखागार में। राह दीन्ही तिन्हें ते महाप्यार में।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। सेठ को शूलिकापे धरो देख के। कीन्ह सिंहासनो आपनो लेखके।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
जो गिनाये इन्हें आदि देके सबै। पाद-परसादते भे सुखारी सबै।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
वार मेरी प्रभू देर कीन्हीं कहा। कीजिये दृष्टि दया की मोपे अहा।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। धन्य तू धन्य तू धन्य तू मैं न हा। जो महा पंचमो ज्ञान नीके लहा।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
कोटि तीरथ हैं तेरे पदों के तले। रोज ध्यावें मुनी सो बतावें भले।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।। जानिके यों भली भाँति ध्याऊँ तुझे। भक्ति पाऊँ यही देव दीजे मुझे।। नाथ तेरे कभी होत भव-रोग ना। इष्ट-वियोग ना अनिष्ट-संयोग ना।।
आपद सब दीजे भार-झोकि यह पढ़त-सुनत जयमाल,
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