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माघ वदी द्वादशि को जन्मे भगवान् सकल सुखकारी, मति-श्रुति-अवधि विराजे, पूजों जिन चरण हितकारी। ॐ ह्रीं माघकृष्णा- द्वादश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 21
द्वादश माघ वदी में, परिग्रह तजि वन बसे जाई, पूजत तहाँ सुरासुर, हम यहां पूजत गुण गाई । ॐ ह्रीं माघकृष्णा-द्वादश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 31
चौदशि पौष वदी मैं, जग-गुरु केवल पाये भये ज्ञानी, सो मूरति मनमानी, मैं पूजो जिन-चरण सुख-खानी । ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा - चतुर्दश्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 4।
आश्विनी सुदि अष्टमिदिन मुक्ति पधारे समेद गिरिसेती, पूजा करन तिहारी, नसत उपाधि जगत की जेती । ॐ ह्रीं आश्विनशुक्ला - अष्टम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
जयमाला
जय शीतल जिनवर, परमधर, छवि के मंदिर शिव - भरता, जयपुत्र सुनंदा के गुणवृन्दा, सुख के कंदा दुख-हरता। जय नासादृष्टि हो परमेष्ठी, तुम पद नेष्टी अलख भये, जय तपो-चरनमा रहत-चरनमा, सुआचरणमा, कलुष गये । स्रग्विणी छन्द जय सुनंदा के नंदा तिहारी कथा । भाष
पार पावे कहावे यथा।।
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