________________
होय पुनीत! कारण अरु जिह्वा वरते आनंद जाल। पहुँचे जहँ कबहूँ पहुँच नहीं, नहिं पाई सो पावे हाल,
नहीं भयो कभी सो होय सवेरे भाषत मनरंगलाल।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
सोरठा भो शीतल भगवान, तो पद-पक्षी जगत में, हैं जेते परवान, पक्ष रहे तिन पर बनी।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
318