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तिहारो लखे रूप, ज्यों दौस देवा । लगे भोर के चाँद से जे कुदेवा । सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा । करों जानि के पाद, की जासु पूजा। भलीभाँती जानी, तिहारी सुरीती । भई मेरे जी में, बड़ी सो प्रतीती। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा । करों जानि के पाद, की जासु पूजा। भयो सौख्य जो मो, कहो नाहिं जाई । जनों आज ही सिद्धि, की ऋद्धि पाई। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा । करों जानि के पाद, की जासु पूजा। करों वीनती मैं, दुहू हाथ जोरी। बड़ाई करो सो, सबै नाथ थोरी। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा । करों जानि के पाद, की जासु पूजा। थके जो गणी चारि हूँ ज्ञान धारें। कहा और को पार, पावें विचारे। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा । करों जानि के पाद, की जासु पूजा।
घत्ता
चन्द्रप्रभनामा, गुणकी दामा पढेभिरामा, धरि मनही । अन्तक परछाहीं, परिहैनाहीं, तापर कबहूँ, झूठ नहीं। ओं ह्री श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्घ्यम् । दोहा
पन्थी प्रभु मन्थी मथन कथन तुम्हार अपार । करो दया सब पै प्रभो, जामें पावें पार |
ओं ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः । (इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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