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जयमाल - झूलना महासेन कुलचन्द गुणकला के वृन्द, नहिं निकट आवे कदा मोहि-मंथी। देखि तुम कांति अति शांतिता की सुगति, लाजि निजमन स्वपद रहत मंथी। बड़ी छवि छटाधर असित तो तिमिर, हर अहर्निश मन्दता लेश नाहीं। कहत मनरंग नित करे मन रंग, जो धरे मन प्रभू के चरण मांहीं।
भुजंगप्रयात नमस्ते नमस्ते, नमस्ते जिनन्दा, निवारे भलीभांति, के कर्मफन्दा। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा।
लखे दर्श तेरो महादर्श पावे। जो पूजे तुम्हें आप, ही सो पुजावे। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। जो ध्यावे तुम्हें आप, ने चित्त माहीं। तिसे लोक ध्यावें, कछू फेर नाहीं। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। गहे पन्थ तो सो, सुपन्थी कहावे। महापन्थ सो शुद्ध, आपै चलावे। चन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। जो गावे तुम्हें ताहि, गावें मुनीशा। जो पावे तुम्हें ताहि, पावें गणीशा। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। प्रभूपाद मांही भयो, जो ऽनुरागी। महापट्ट ताको, मिले वीतरागी। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। प्रभू जो तुम्हें नृत्य, कर कर रिझावें। रिझावें तिसे शक्र, गोदी खिलावे। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा।
धरे पादकी रेणु, माथे तिहारी। न लागे तिसे मोह, दृष्टि जु भारी। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। लहे पक्ष तो जो, वो है पक्षधारी। कहावे सदा सिद्धि, को सो विहारी। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा। नमावे तुम्हें सीस, जो भाव सेरी। नमें तासु को लोक, के जीव हेरी। सुचन्द्रप्रभू नाथ, तोसो न दूजा। करों जानि के पाद, की जासु पूजा।
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