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________________ श्री पुष्पदन्त जिन-पूजा (रचयिता - कविवर मनरंगलाल) काकन्द नगरी पितु सुग्रीवक, रमा माता जासु की। इक्ष्वाकु वंश सुफेद देह, उचाव धनुशत तासु की।। स्वर्ण आरण तजि द्विपूरब, लाख सुआयु धरौ भली। पग तरे चिह्न सुमगर सोहत, पुष्पदन्त महाबली।।1।। आवो यहाँ कृपाल, कृपा करो तनि अब आयके, मैं करूँ पूजन अष्टविध मन, वचन सीश नवायके। जो सरें मेरे काज अटके, करम ठक घेरे खड़े, तो बिना निवरण होत नाही, महाभ्रम झगड़े पड़े।।2।। ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (इति आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठौ तिष्ठौ ठः ठः। (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितौ भव भव वषट (सन्निधिकरणम्) अष्टक - उपेन्द्रवज्र निर्मल जहां श्रीद्रह को सुनीर। लेकर भरे कुम्भ महा गहीर।। सु पुष्प-दन्त प्रभु पाद-पद्म। पूजू मिले जो निर्वाण-सा।। ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा तन मन घसों, चन्दन काशमीरा। लगे न जो अन्तक, की समीरा।। सु पुष्प-दन्त प्रभु पाद-पा। पूजू लिये जो निर्वाण-सद्य।। ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा । सुतन्दुलं लज्जित, मार गोती। लिये महा तेज, अभेद मोती।। सु पुष्प-दन्त प्रभु पाद-पा। पूजूं लिये जो निर्वाण-सद्य।। ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । 308
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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