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जयमाला - झूलना छन्द
अष्टपद मत्त गज जे हरत सुखजलज, तोरि तिन दन्त तुम करत सूने। धन्य भुजदण्ड धर प्रवर, परचंड, वर घ्यानमय खड्ग गहि करम लूने।। सिद्ध अति अति दुर्ग थल जीति हूवे, अचल अन्तकी देह तें कछुक ऊने। अरज मनरंग की नाथ सुनिये तनक, होय तव भक्ति मो भावनै दजे।।
भुजंगप्रयात छन्द नमो जय नमों जय सुसैना के नंदा, तु आसा हमारी चकोरी के चन्दा।।
करो नाथ दाया कहों हूँ सुटेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। न देखे तिहारे भले पाद-पद्मं, महामोक्ष के मूल आनन्द सा।। सयातें भई मोहि संसार फेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। वसो हूँ चिरंकाल नीगोद माहीं, धरे भौ जु अन्तार माहूर्त माहीं। छ तीनै-रु तीनै छ छै अङ्क हेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। अन्तैहि भागे कहे आखरा के। कह्यो ज्ञान एतोहि ताके विपाके।। कध्यो हू लहो जानि थावार केरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। तहाँ पंचधा भेद में दःख भारी। सहे जो कही जात नाहीं सम्हारी।। भयो दीन यों पाप की संचि ढेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। भयो संख आदी गिंडोला द्विइन्द्री। पुनः कान-खज्जूर हूवी तिइन्द्री।
द्विरेफादि दे चारि इन्द्रीय हेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। महामच्छ की आदि पर्याय पाई। करी भूरि हिंसा कहीं नाहिं जाई।। मर्यो नर्क में जाय कीन्हीं न देरी। प्रभु मेटिये दीनता आज मेरी।। वहां छेदना भेदना ताड़नाई। तपायो गयो शूल सेज्या पड़ाई।।
इन्हें आदि दे कष्ट पाये घनेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। बसो गर्भ में आयके मैं कहूं क्या। बसों अंग सारे मुख औंधा करूं क्या।।
रह्यो भूति हा कर्म के जाल घेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। भयो, यन्त्रिका सों मनो तार काढ्यो। तहां मोहि ऐसा बड़ो दुःख बाढ़यो।। ___ भई बाल अवस्था मनीषा न नेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।। युवा वय भई काम की चाह बाढ़ी। वियोगी भयो शोक की रीति काढ़ी।।
न देखे तुम्हें हां भले चित्त सेरी। प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी।।
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