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जरा - रोग ने घेर के मोहि किन्हों। महा राजरोगी भलो दाव लीन्हों ।। झड्यो ज्यों पको पान काला निलेरी । प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी || कोई पुण्य से देव को पट्ट लीनो। वहां जाय के मैं भयो देव हीनो
ह्या दुःख मनसा न भाषे बने । प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी भ्रम्यो चारिहूँ और साता न पाई । तिहारे बिना और को मो सहाई ।। यही जानि के काटि दे कर्म बेरी । प्रभू मेटिये दीनता आज मेरी ||
घत्ता- सम्भव जयमाला, नासत काला, आनन्द जाला, कण्ठ धरे। सोविद्याभूषण, नासै दूषण, शिवतियसंग नित भोग करे।। ओं ही श्री सम्भवनाथ जिनेन्द्राय । सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दोहा - सम्भवनाथ प्रसाद ते, होउ सकल सुख भोग। पुत्र पौत्र परताप जस, सुरगश्री-संयोग।।
ओं ह्रीं श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय नमः (इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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