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ॐ ह्रीं बैशाखशुक्ल-षष्ठीदिने मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीअभिनंदननाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला
(दोहा) तुंग सु तन धनु-तीनसौ, औ पचास सुखधाम। कनक-वरन अवलौकिकैं, पुनि-पुनि करूँ प्रणाम।1।
(छन्द लक्ष्मीधरा) सच्चिदानंद सद्ज्ञान सद्दर्शनी, सत्स्वरूपा लई सत्सुधा-सर्सनी। सर्व-आनंदकंदा महादेवता, जास पादाब्ज सेवै सबै देवता।2। गर्भ औ जन्म निःकर्मकल्यान में, सत्त्व को शर्म पूरे सबै थान में। वंश-इक्ष्वाकु में आप ऐसे भये, ज्यों निशा-सर्द में इन्दु स्वेच्छै ठये।3।
(लक्ष्मीवती छन्द) होत वैराग लौकांत-सुर बोधियो, फेरि शिविकासु चढ़ि गहन निज सोधियो। घाति चौघातिया ज्ञान केवल भंयो, समवसरनादि धनदेव तब निरमयो।4।
एक है इन्द्र नीली-शिला रत्न की, गोल साढ़ेदशै जोजने रत्न की। चारदिश पैड़िका बीस हज्जार है, रत्न के चूर का कोट निरधार है।5।
कोट चहुँओर चहुँद्वार तोरन खचे, तास आगे चहूँ मानर्थभा रचे। मान मानी तर्जे जास ढिंग जायके, नम्रता धार सेवें तुम्हें आयके।6।
(छन्द लक्ष्मीधरा) बिंब सिंहासनों पै जहाँ सोहहीं, इन्द्रनागेन्द्र केते मने मोहहीं। वापिका वारिसों जत्र सोहै भरीं, जास में न्हात ही पाप जावै टरी।7। तास आगे भरी खातिका वारिसों, हंस सूआदि पंखी रमैं प्यारसों। पुष्प की वाटिका बागवृक्षे जहाँ, फूल और फलें सर्व ही है तहाँ।8।
कोट सौवर्ण का तास आगे खड़ा, चार दर्वाज चौ ओर रत्न जड़ा। चार उद्यान चारों दिशा में गना, है धुजा-पंक्ति और नाट्यशाला बना।9।
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