________________
तासु आगें त्रितीकोट रूपामयी, तूप नौ जास चारों दिशा में ठयी। धाम सिद्धांत-धारीन के हैं जहाँ, औ सभाभूमि है भव्य तिष्ठे तहाँ।10। __तास आगें रची गंधकूटी महा, तीन है कट्टिनी सार-शोभा लहा। एक पै तौ निधैं ही धरी ख्यात हैं, भव्यप्रानी तहाँ लौं सबै जात हैं।11।
दूसरी पीठ पै चक्रधारी गमै, तीसरे प्रातिहारज लशै भाग में। तास पै वेदिका चार थंभान की, है बनी सर्वकल्यान के खान की।12।
तासु पै हैं सुसिंघासनं भासनं, जासु पै पद्म प्राफुल्ल है आसन। तासु पै अंतरीक्षं विराजै सही, तीन-छत्रे फिरें शीस रत्ने यही।13।
वृक्ष शोकापहारी अशोकं लसै, दुंदुभी नाद औ पुष्प खते खसै। देह की ज्योति से मंडलाकार है, सात भौ भव्य तामें लखै सार है।14।
दिव्यवानी खिरै सर्वशंका हरे, श्रीगनाधीश झेलें सुशक्ती धरै। धर्मचक्री तुही कर्मचक्री हने, सर्वशक्री नमें मोदधारे घने।15। भव्य को बोधि सम्मेद शिव गये, तत्र इन्द्रादि पूजै सुभक्तीमये। हे कृपासिंधु मोपै कृपा धारिये, घोर संसारसों शीघ्र मो तारिये।16।
जय जय अभिनंदा आनंदकंदा, भवसमुद्र वर पोत इवा।
भ्रम-तम शतखंडा, भानुप्रचंडा, तारि तारि जगरैन दिवा।17। ॐ ह्रीं श्री अभिनंदननाथ जिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा।।
(छन्द कवित्त) श्री अभिनंदन पापनिकंदन, तिनपद जो भवि जजै सुधार।
ताके पुन्य-भानु वर उग्गे, दुरित-तिमिर फाटै दुःखकार।। पुत्र-मित्र धन-धान्य कमल यह, विकसै सुखद जगतहित प्यार। कछुक-काल में सो शिव पावै, पढ़े-सुने जिन जजै निहार।181
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
28