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नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।। अनादि हो अनन्तज्ञान, केवल प्रकाश हो। निरक्षरी धुनीश नाथ, मोद के निवास हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।। कृपाल धर्मपाल दीनपाल काल-नाश हो। अनेक रिद्धि के धनी महा सुरूपवास हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो।
कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।। प्रवीन हो पवित्र हो, भवाब्धि पारगामि हो। निहार के करन्नहार, ईश सर्व जामि हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो।
कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।। अलोक लोक लोकने, विशाल चक्षुवान हो। महान दीप्तिवान मोह, शत्रु को कृपान हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।।
गुणौध रत्न के प्रभू अपार पारवार हो। भवाब्धि डूबते तिन्हें, अजान बाहुधार हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।। सदैव मोक्षवाम के, संयोग के सिंगार हो। कछूक ऊन देहतें, सुज्ञान के अकार हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।।
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