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चराचर जिते कहे, तिन्हें दयालु छत्र हो।
सुमन्नरंगलाल के, सुनेत्र के नक्षत्र हो।। नमो नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो। कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो।।
घत्ता
जय जय गुणधारी, मायाहारी, विपतिविदारी, जसकरणं। जय सुखसंचारी, परमविचारी, अधम उधारी, तुअशरणं।। ओं ह्री श्री ऋषभनाथजिनेन्द्राय महार्ण्यम्।
(गीता छन्द) जो करें मन वच तन सुपूजा, आदिनाथ प्रभू तनी।
सो इन्द्र चन्द्र धनेन्द्र चक्री, पट्ट पावे यों भनी।। फिर होय शिवतिय को धनी, सुअनन्त सुख को भोगता।
जरमरन आवागमन होय न, होय सहज निरोगता।
ओं ह्रीं श्री ऋषभनाथजिनेन्द्राय नमः
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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