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फागुन वदी एकादशी शुभ, ज्ञान केवल पाइयो। सुर रचित हाटकपीठ पै, धर्मोपदेश सुनाइयो । हमहूँ इहाँ अब अरघ ल्याय, बजाय तूर सुछन्दसों। गुण गायगा सरांहि छवि, जजों अति आनन्दसों ।। ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णौकादश्म्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
चौदस वदी शुभ माघ की, कैलास ऊपर जायके। नरवान हूवो करी पूजा, इन्द्रने चित ल्यायके || हमहूँ इहाँ अब अरघ ल्याय, बजाय तूर सुछन्दसों। गुण गायगाय सरांहि तुअछवि, जजों अति आनन्दसों ।।
ओं ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाल - त्रिभंगी छन्द
जय जय गुणधामं, दरशन बामं, जीतो कामं, लोभंते । जय जय दुखहारी, सुयश विथारी, करुणाधारी जैनपते ।। जय नाभीनन्दन, कलुषनिकन्दन, भविजनवन्दन, गुणअगरे । जय जय मनरंगभनि, सुजसहिसुनिसुनि, अधमातारिपुनि, आपतरे।।
नाराच छन्द
दिनेशतें अधिक्क तेज, की महान राशि हो । कमोदिनी भवीन के, भले सुधानिवास हो । नमों नमों रिषीश तोहि, काम के निवार हो । कलंक पंक छालने, सदा घटाऽकार हो || प्रवीन हो, प्रतापवान, सर्व के सुजान हो। गणी फणी अणीस के, सदैव एक ध्यान हो ।।
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