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पंचकल्याणक - गीता छन्द
सवार्थसिद्धि विमान तजि, आषाढ़-वदि द्वितीया दिना।
मरुदेवी के सो गरभ आये, रंजित सिगरे जना।। हमहूँ इहाँ अब अरघ ल्याय, बजाय तूर सुछन्दसों। गुण गायगाय सरांहि तुअछवि, जजों अति आनन्दसों।।
ओं ह्रीं अषाढकृष्णद्वितीयाम्यां गर्भकल्याणक प्राप्ताय श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मधुमास वदि नौमी दिना, जनमे भये अति सौहिला।
पूजे तुम्हें इन्द्रादि ने ले, जायके पांडुकशिला।। हमहूँ इहाँ अब अरघ ल्याय, बजाय तूर सुछन्दसों। गुण गायगाय सरांहि तुअछवि, जजों अति आनन्दसों।। ___ओं ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
वदि चैत नौमी स्वयं दीक्षित, भये प्रभु शुभ भावसों। सुर असुर नरपति सकल तहुँ, पूजे तुमहिं अतिचावसों।।
हमहूँ इहाँ अब अरघ ल्याय, बजाय तूर सुछन्दसों। गुण गायगाय सरांहि तुअछवि, जजों अति आनन्दसों।।
ओं ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां तपः कल्याणकप्राप्ताय श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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