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प्रभु पास द्यो मुझ दास की सुनि अरज अविचल - ठाम ।।10।। - कर्म नाशिविनाशि वपु शिवनयरि पाई वीर। वसु-द्रव्यतैं वह थान पूजे टरैं सबही पीर ।। सो अचल हैं सम्मेदपैं मम भाव हैं वसु जाम। प्रभु पास द्यो मुझ दास की सुनि अरज अविचल - ठाम ।।11। कर जोर रामचन्द भाषै अहो धन देव
भवि बोधिकैं भवसिन्धु तारे तरण-तरण टेव मैं नमत हूँ मोतार अबही ढील क्यों तुम काम | प्रभु पास द्यो मुझ दास की सुनि अरज अविचल - ठाम ।।
निति पढ़ें जे नर-नारी सब ही करै तिनकी पीर ।
सुर-लोक लहि नर नोय चक्री काम हलधर वीर।। फुनि सर्व कर्म जु घाति कैं लहि मोख सब सुख धाम।। प्रभु पास द्यो मुझ दास की सुनि अरज अविचल - ठाम।। 13॥ ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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