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श्री नेमिनाथ जिन-पूजा ( रचयिता - श्री रामचन्द्र जी )
(अडिल्ल)
घणे जन्तु र कर्यौ नेमि सुनि गिरि गये। तजि रजमति, भव अनित पेखि, मुनिवर भये।। ध्यान - खड्ग गहि हने कर्म शिव-तिय वरी । आह्वानन विधि करूँ प्रणमि गुण हिय-धरी।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
(त्रिभंगी छन्द)
निर्मल ल्याय महातीर्थोदक, कनक - रतनमय भरि झारी । मनवचतन सुध करि जिनपद पूजे, नसै जन्म-मृति दुखकरी।।
श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्दूँ, राजमति - सी ततछिन छारी। पशुवनि की वसुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ कुंकुम ल्यावैं अगर मिलावैं, चन्दनतें घनसार घसैं। तसु परसि समीर चलै अति शीतल, महा-दाह ततकाल नरौं। श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्दूँ, राजमति -सी ततछिन छारी। पशुवनि की वसुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी ॥ 2 ॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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