________________
तरु बकुल तलैं सिरकेश टारि, तजि उपाधि सुधातम - ध्यान धार आषाढ़ कृष्ण दशमी महान, इन्द्रादि चले करि तपकल्यान॥10॥ करि षष्ठम नगरी सुजग मांहि, अन काज गये नृपद लखांहि । पय-दान दियो सुर भक्ति देख, आश्चर्य करे पण - विधि बसे । । 11॥ नव मास महातप उग्र ठानि, धरि ध्यान शुकल चउघाति हानि। अगहन सित चउथ सुज्ञान-भास, उपज्यौ सुर-असुर कल्यान ठान।।12। समवादि सहित करिकैं विहार, सम्मेद ठये बहु भव्य तार। वैशाख
कृष्ण चौदशि मझारि, शिववधू वरी सु अघाति जारि॥13॥ तब चतुर-निकायक देव आय, वसु-भेव पूजि बहु पुनि उपाय। करि उत्सव मंगल मोक्ष ठान, निज थान गये करि के कल्यान ॥14॥
जय महा अमल-गुण-सहित धार, जे लोक बोधदर्पण मझार। दर्शन जब जुगपत लखत भूप, बल अनन्त काल ध्रुव एक रूप।।15।। सुहमन्त देश सूच्छम अपार, गुण अगुरलघु हल को न भार। तन चर्म कछू अवगाह हीन, नहिं आमय अव्यावाध चीन।।16।। गुण अष्ट इहै निहचै अनन्त, को वरणि सकै भुवि - मांहि सन्त। मैं विनऊँ श्रीनमिनाथ देव, मुझ देहु सदा तुम चरण सेव।। 17॥ हो कृपानाथ जगपति जगीश, तुम तारण तरण निहारि ईश ।
मैं शरणि गही मुझ तारि नाथ, रामचन्द नमै धरि शीश हाथ 18॥ (घत्ता)
इह नमि गुणमाला, परम रसाला, मन-वच-तन कण्ठै धरई । ह्वै सिद्धि निरंजन, भव-दुख भंजन, अगणित सुख शिव-संग करई ॥ ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा।
।। इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
246