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चतुरदशी वैशाख बदि, हनि अघाति शिवथान।
गये सम्मेदाचल थकी, जजहूँ मोक्षकल्यान।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
जयमाला (दोहा) इन्द्र नमत मणि मुकट की, नेक न दति दरसाय। नमि जिन नखमण्डल थकी, त्रिविध नम तिन पाय।।1।।
__ (पद्धति छन्द) जय नमि जिनवर के जुगल पाय, प्रण मनवचतन शीश नाय। अपराजित नाम विमान सार, चय आये मिथिलापुर मंझार।।1।। विजयारथ-तात इक्ष्वाक-वंश, विपुलादेवी-उर सहस-अंश। अश्विनि कुवार दोयज असेत, जिन गर्भ लयो हरि धारि हेत।।2।।
आये कल्याण गरभादि काज, करि उत्सव चाले देवराज। धनपति करि है तिरकाल वृष्ट, षट्मास आदि नव रत्न सुष्ट।।3।।
जय जिन जनमे त्रय-ज्ञान धार, आषाढ़ कृष्ण दशमी मझार। आये सब चतुरनिकाय देव, निज-निज वाहन निज नारि एव।4।। तब सची जाय परसूति थान, नमि गुप्त लये जिन तेज भान। हरि नमसकार करि गोद लेय, सिर छत्र तीन ईशान इय।।5।। फुनि सनतकुमार महिन्द-इन्द, सित-चवर करें शोभा अमन्द। सुरगिरि पाण्डुक वन मांहि जाय अभिषेक कर्यो जल क्षीर लाय।।6।।
सचि पोंछि करै श्रृंगार सार, बहु तूर बजै तिन को नर पार। वसु-विधि पूजा करि निरति ठानि, सन्तोषे सात-पिताति आन।।7।
तन-हेम धनुष पणदह उतंग, दस सहस वरष की आयु चंग। करि राज तज्यौ भयभीत होय, भवभोग विनश्वर काय जोय।।8।। तबही लौकान्तिक आय देव, सम्बोधि चले निज ठानि एव। सौधर्म आदि सुर खचर भूप, शिविका ले चाले वन अनूप।।9।।
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