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बादाम श्रीफल चारु पुंगी, आदि शुभ रलियावने। तसु गन्ध द्वै घ्राण रद्म, लखे चक्खि-सुहावने।। कनक थाल फलते भरों उत्तम, अमर तरु के लेय ही।
नमिनाथ जिनके चरण पूर्जे, अमल गुणगण धेय ही।। 8॥ ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
विमल नीर सुगन्ध चन्दन, अछित श्वेस उजास ही। वर कुसुम चरुतै क्षुधा नासैं, दीप”तम नास ही।।
रामचन्द्र इम अर्घ कीजै, धूप फल शुभ लेय ही। नमिनाथ जिनके चरण पूजूं, अमल गुणगण धेय ही।। 9॥ ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (दोहा) अपराजित” हरि चये, विपुला-उर अवतार।
दोयज श्याम असोज ही, लयो जनँ भवतार।। ॐ ह्रीं आश्विनकृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-मण्डिताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
दशमी असित आषाढ़ ही, जनम सुराधिप जान।
सुरगिरि ले सनपन जजे, जजहूँ जनमकल्यान।। ॐ ह्रीं आषाढकृष्णा-दशम्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।
बदी अषाढ़ दशमी तज्यौ, जगत राज्य तप धार।
सुथिर भए निज ध्यान में, जनँ चरण-जुग सार।। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-दशम्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।3।
मगसिर सुदी एकादशी, हन घातिया कर्म।
कह्यो धम्र केवलि भये, जजू चरण तजि भर्म।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला-एकादश्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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