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शुभ सालि अखण्डित सौरभि-मण्डित, शशि-सम उज्जवल अनियारे।
भूपनकू मोसर मुक्ता-सी दुति पुंज करें भवि मनहारे। श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्दूँ, राजमति-सी ततछिन छारी। पशुवनि की रव सुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी।। 3॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
कुसुम मनोहर घ्राणन के हर, पंच वरण अति सुखकारी। सुर-तरु के पावन चखि-ललचावन, अति मृदुतै भवि भरि थारी।।
श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्दै, राजमति-सी ततछिन छारी। पशुवनि की रव सुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी।। 4।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
अति मिष्ट मनोहर घेवर फैनी, मोक गूझा भरि थारी। रसना के रंजन रस के पूरे, क्षुधा-निवारन बलकारी।। श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्,, राजमति-सी ततछिन छारी।
पशुवनि की रव सुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी।।5।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीप-रतनमय जोति मनोहर, कनक रकावी मैं धारें। तम मोह नसै जिम पावन थकी घन, स्वपर लखै गुण विस्तारै।।
श्रीनेमि जिनेश्वर के पद वन्दै, राजमति-सी ततछिन छारी।
पशुवनि की रव सुनि करुणा धरि, जाय चढ़े प्रभु गिरनारी।। 6।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ धूप दशांग हुताशन के संग, लैं धूपायन मांहि भरै। तसु सौरभितै मधु गुंजत आवे, अष्टकर्म ततकाल जरै।।श्री017॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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