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अगहन सुदी एकादशी, सुरपति चुरनिकाय। सुरगिरि सनपन करि जजे, मैं जजहूँ गुण गाय।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला-एकादश्यां जन्ममंगल-मण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।2।
भवभय-करि तृणवत् तज्यौ , जगत-राज धर धीर।
सित अगहन एकादशी, जनँ धर्यो तप वीर।।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला-एकादश्यां तपोमंगल-मण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।
पौष कृष्ण दोयज हने, घाति-कर्म दुख-दाय। केवल लै वृष भाखियो, जनूँ ज्ञान गुण गाय।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-द्वितीयायां ज्ञानमंगल-मण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।41
फाल्गुन पंचमि शुकल ही, शेष-कर्म हनि मोख। गये सम्मेदाचल थकी, शित-हित पद गुण-घोख।। ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला-पंचम्यां माक्षमंगल-मण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
जयमाला (दोहा) बालपनैं मल्लिनाथ जी, विषय-अरनि दुख-कार। प्रगट भस्म तप-अग्नितें, करे न[ पद सार।।1।
(पद्धरि छन्द) जय तीन-जगतपति मल्लिदेव, भव-उदधितार तुम शरण एव। जय धर्म-तीर्थ-करता जिनेश, जगबन्धु बिना-कारन महेश।1। जय तीर्थराज किरपा-निधान, जय मुक्तिरमा-भरता सुजान।
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