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दशांग धूप चन्दनादि स्वर्ण-पात्र में भरें। हुतास-संग धारि कर्म-औघ भव्य के ज।।
अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं।
अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं।। 7॥ ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।71
मिष्ट सुष्ठु श्रीफलादि घ्राण-चक्खिकू हरें। मनोग्य चित्त-हार पूज-जोग्य थाल में भरें।।
अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं।
अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं।। 8।। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
(छप्पय) सलिल सुच्छ शुभ गन्ध मलयतें मधु झंकार। तन्दुल शशितें श्वेत कुसुम-परिमल विस्तारै।।
क्षुधा-हरण नैवेद रतन-दीपक तम नासै। धूप दहै वसु-कर्म मोख-मग फल परकास।।
इम अघ्र करें शुभ-द्रव्य ले, रामचन्द्र कनथाल भरि। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
___पंचकल्याणक (दोहा) चैत शुक्ल प्रतिपद चये अपराजिततें इन्द्र। प्रजावती-उर अवतरे, जनूँ मल्लिगुण-वृन्द।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला-प्रतिपदायां गर्भमंगल-मण्डिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
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