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राय-भोग्य के मनोग्य तन्दुलौघ सार ही । सरल चित्त-हार श्वेत पुंज भव्य धार ही ।। अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं । अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं। 3 ॥
ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
सुरोपुनीत पुष्पसार पंच-वर्ण ल्याइये। जिनेन्द्र अग्र धारिकैं मनोजकूं नसाइये।
अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं ।
अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं॥ 4॥
ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय कामबाण - विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मोदकादि घेवरादि घृत खण्ड करें। स्वर्ण-थाल धारतैं क्षुध्यादि रोगकूं हरें ।। अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं । अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विध्वंसनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नदीप तेज भान हेम - थाल में भरें। जिनेन्द्र-अग्र धारि भव्य मोह-ध्वान्तकूं हरें ।। अनेक गीत, नृत्य, तून ठानिये विनोदस्यौं ।
अनर्घ-द्रव्य ल्याय मल्लिनाथ पूजि मोदस्यौं॥ 6॥
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार - विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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