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जेठ असित चउदसि गये, हनि अघाति शिवथान। सुरपति उत्सव अति करे, मंगल मोक्ष-कल्यान।।शान्ति0॥18॥
सेवक अरज करै सुनो, हे करुणानिधि देव। दुखमय भवदधि तै मुझै तारि करूँ तुम सेव।।शान्ति0॥10॥
घत्ता-छन्द इति जिन-गुणमाला, अमल रसाला जो भवि कंठे धरई। हुय दिवि अमरेश्वर, पुहमि नरेश्वर, शिव-सुंदरि ततछिन वरई।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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