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हेम बरन तन सोहनो, तुंग धनुष - चालीस
आयु बरस-लख नरपती, सेवत सहस-बत्तीस | | शान्ति0॥5॥ षट् खण्ड नवनिधि तिय सवै, चउदह - रतन भंडार । कछु कारण लखिकैं तजे, षणचव आशिय अगार ॥ | शान्ति0॥6॥ देव ऋषी सब आयकै, पूजि चले ज
लेय सुरां शिविका धरी, बिरछ - नंदीश्वर शोधि| | शान्ति0॥7॥ कृष्ण चतुरदसि जेठकी, मनपरजै लहि ज्ञान । इन्द्र कल्याणक-तप कर्यो, ध्यान धर्यो भगवान ||शान्ति0॥8॥ षष्टम करि हित असनकै, पुर सोमनस मंझार
गये दयो पयमित्त जी, बरषे रतन - अपार | | शान्ति0॥ 9 ॥ सहित वसु-गुणी, बरस करे तप-ध्यान।
पौष शुक्ल दशमी हने, घाति लह्यो प्रभु - ज्ञान | शान्ति 0।10। समवशरन धनपति रच्यो, कमलासन पर देव। इन्द्र-नरा षट्-द्रव्य की, सुनि थिति थुति कर एव || शान्ति0॥11॥ धन्य जुगलपद मो तनौ, आयो तुम दरबार
धन्य उभय-चक्षु भये, वदन - जिनंद निहार ॥ शान्ति012৷ आज सफल कर ये भये, पूजत श्री जिन पाय
शीस सफल अबही भयो, धोक्यो तुम प्रभु आय | शान्ति 0।।13।। आज सफल रसना, भई तुम गुणगान करंत।
धन्य भयौ हित मो तनो, प्रभु - पद ध्यान धरं । | शान्ति0॥14॥ आज सफल जुग मो तनौ, श्रवन सुनत तुम बैन। धन्य भये वसु-अंग ये, नमत लयो अति - चैन || शान्ति0॥15॥ राम कहै तुम गुण-तणा, इन्द्र लहै नहीं पार।
मैं मति-अल्प अजान हूँ, होय नहीं विस्तार | | शान्ति ॥16॥ वर्ष-सहस-पच्चीसही, षोडश कम उपदेश ।
देय समेद पधारिये, मास रह्यो इक शेष || शान्ति0॥17॥
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