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जेठ असित चउदसि धर्यो, तप तजि राज-महान सुर-नर-खगपति पद जजैं, मैं जजहूँ भगवान । ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा - चतुर्दश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 31
पौष शुक्ल दशमी हने, घाति-कर्म दुखदाय केवल लहि वृष भाखियो, जजूँ शांति पद ध्याय।। ऊँ ह्रीं पौषशुक्ला दशम्यां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
कृष्ण चतुर्दसि जेठ की, हनि अघाति शिवथान। गये सम्मेदचल थकी, जजूँ मोक्ष कल्यान ।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा - चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
जयमाला (सोरठा)
शान्ति-जिनेश्वर-पाय, बंदूँ मन-वच-काय तै। देहु सुमति जिनराय, ज्यौं विनति रुचि करौं। शान्ति करम-वसु हानिकैं, सिद्ध भये शिवजाय। शान्ति करो सब लोक में, अरज यहै सुखदाय
शान्ति करो जग शांति जी ॥1॥
धन्य नगरी हथनापुरी, धन्य पिता- विश्वसेन । धन्य उदर ऐरासती, शान्ति भये सुखदेन॥शान्ति0॥2॥ भादां सप्तमी स्यामही, गर्भ-कल्याणक ठानि । रतन धनद वरषाइयो, षट् -नव मास महान | | शान्ति0॥3॥
जेठ असित चउदश विषै, जनम-कल्याणक इन्द मेरु कर्यो अभिषेक कैं, पूजि नचे सुरवृन्द | | शान्ति ॥4॥
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