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घोटकेन श्री फलेन हेमथाल में भरे। जिनेश के गुनोघ गाय सर्व एनकू हरे।। रोग-शोक आधि-व्याधि पूजते नशाय हैं।
अनंत-सौख्यसार शांतिनाथ सेय पाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
छप्पय
सरद-इन्दु-सम अंबु तीर्थ-उद्भव तृष-हारी। चंदन दाह-निकंद शालि शशिते द्युति भारी।। सुरतरु के वर कुसुम सद्य चरु पावन धारै।
दीप रतनमय जोति धूपतै मधु झंकारै।। फल उत्तम करि अरघ शुभ रामचन्द कनक-थाल भरि।
शांतिनाथ के चरण-जुग वसु-विधि अरचैं भव-धरि।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक (दोहा) सर्वारथ-सिद्धि मैं चये, भादों सप्तमि श्याम।
एरादे-उर अवतरे जगूं गर्भ अभिराम।। ऊँ ह्रीं श्रीं भाद्रपदकृष्णा-सप्तम्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
जेठ चतुर्दसि कृष्ण की, जन्में श्री भगवान। सनपन करि सुरपति जजे, मैं जजहूँ धरि ध्यान।। ॐ हीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
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