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समवादि जिते भविजी, सुनि धर्म तिरे सबजी, प्रभु आयु रही जब मास-तणी तबै जी।
सम्मेद पधारेजी, सब जोग संघारेजी, सम-भाव विथारि वरी शिवतिय जबैजी।8। वसु-गुण-जुत भूषितजी, भव छार बसे तितजी,
सुख-मगन भये जित मावस चैत की जी। सुर सब मिलि आयेजी, शिव मंगल गायेजी, वह पुण्य उपाय चले तुम गुण थकी जी।9। गुण-वृन्द तुम्हारेजी, बुध कौन उचारेजी,
गणदेव निहारे पै वच ना कहैं जी। चन्दराम करै थुतिजी, वसु-अंग-थकी नतिजी,
गुण पूरण द्यौ मति मर्म तुहे लहैजी।10। प्रभु अरज हमारीजी, सुनिज्यो सुखकारीजी,
भव में दुखभारी निवारौ हो धणीजी। तुम शरण सहाईजी, जग के सुखदाईजी, शिवदे पितु माई कहो कबलौं धणीजी।।11।।
(घात्ता छंद) इति गुण-गण सारं, अमल-अपारं, जिन अनन्त के हिय धरई। हनि जर-मरणावलि, नासि भवावलि! शिव-सुन्दरि ततछिन वरई।।
ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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