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लखि मुनि में गणदेव इकासी आदि ही
पूरन सहस-पचीस हीन वर्ष - तीन ही, विहरे केवल पाय आयु भई छीन ही भई छीन समेद गिरितैं आश्वनी सित अष्टमि सही, असि ध्यान-सुकल थकी अघाते नै मुक्ति - तिया लही। सब इन्द्र आय कियो महोत्सव मोक्ष-मंगल गायही, हूँ नमूँ शीतलनाथ के पद-कमल गुणगण ध्याही।5। वसु-खित वसु-कर्म हानि बसे वसु-गुणमई, ज्ञानावरणी घाति विश्व जान्यो सही । देखो लोक - अलोक हने दृशनावली, वेद को कर नाश अबाध भले वली ।
फुनि वली शुद्ध चरित्र में थिर मोह नाश थकी भये, अवगाह-गुण छय-आयुतें निरकय नाम गये थये।
गुण गण अगुरलघु छय-गोत के अन्तराय-छय बलवन्त ही, सिध भये शीतलनाथ जी तिरकाल वन्दे सन्त ही | 6 | वसु-गुण ये विवहार नियत अनन्त ही, जानें गणधर पैन बखानत जन्त ही ।
ज्यों जलनिधि विस्तार कहैं करते इतों, बाल न मरम लहन्त न जानत है कितों ।
कितनी न जानै उदधि है जिम तुहे गुण वरणन करूँ, मैं भक्तिवश वाचाल हैं कछु शंक मन नाहीं धरूँ।
देहु तेरी करूँ विनती अहो शीतलनाथजी, चन्द्रराम शरण तिहार आयो जोरि करि के हाथजी । 7 । दोहा
शीतल के पद-कमल जुग, त्रिविध नमूँ सुख पाय। भवदुख-ताप मिटाइयो, अहो दशम जिनराय ।। 1 ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। ।। इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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