________________
षट्मास ले नवमास दिन में वार-त्रय मणि वर्षये, गर्भ-कल्याण महन्त-महिमा देखि सब जन हर्षये । 1 ।
पूर्वाषाढ नक्षत्र माघ वदि द्वादशी, जनमे श्रीजिननाथ नभोगण सब हँसी ।
चतुरनिकाय मझारि घण्टादि बजे भले, नये मौलि फुनि पीठ सबै हरि के चले ।। चले पीठ अवधितें जिन- जन्म निश्चै हरि लखो, डग सप्त चलि नुति ठानि वासव मेरु चलने कूं अखो । जिन लेय पाण्डुक वनविषें अभिषेक करि पूजा करि, पित-मात दे जन्मा कल्याणक ठानि थल चालो हरि । 2 । वरण तनतुंग निवै धनु को सही, लछिन श्रीवछ आयु पूर्व-लख की कही । नीति-निपुण करि राज तजौ तृणवत् तबै, लौका कसुर आय सम्बोधि चले सबै।। सम्बोधि आये माघ-द्वादशि-कृष्ण श्रीजिनवर गये, नमः सिद्धेभ्यः कहि लौंच कीनों उपधि तजि कर मुनि भये सुर-असुर नृपगण ठानि पूजा धवल-मंगल गायही, निःकर्म-कल्याणक सुमहिमा सुनत सब सुख पायही । 3। षष्टमि धरि निज-ध्यान-विषै प्रभु थिर भ पूरण करि अनिकाज सेयपुर में गये। क्षीरदान जुत-भक्ति पुनर्वसुजी दिये, हरषि देव आश्चर्य पंच ततखिण किये ।। आश्चर्य-कत्र्ता रत्न वर्षे अर्ध द्वादश कोडि ही, धरि ध्यान-सुकल उपाय केवल घाति चारों तोडि ही चर-अचर लोक-अलोक जुगपति देखि सबही वर्णिये, सुनिइन्द्र ज्ञानकल्याण-उत्सव पौष वदि चउदशि किये।4। योजन साढा-सात लसै समवादि ही,
185