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असित माघ द्वादशि तजी, तृणवत् भूति महान । नगन दिगम्बर वन बसे, जजूँ दसम भगवान || ऊँ ह्रीं माघकृष्णा- द्वादश्यां तपोनमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 3।
पौष चतुरदशि श्याम ही, शुकल - ध्यान - असि धारि। हने कर्म चउ-घातिया, जजूँ देव मुझ तारि ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा - चतुर्दश्यां केवलज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 4।
अष्टमी सित आसोज की, गये मोक्ष भगवान । वसु विधि पद पंकज जजूँ, मोहि देहु शिवथान || ॐ ह्रीं आश्विनशुक्ला - अष्टम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 51
जयमाला (दोहा)
शीतल तुम पद-कमल-जुग, नमूँ शीश धरि हाथ। भवदधिध-डूबत काढि मो, कर अवलम्ब दे हाथ ॥ 1॥ चाल - मंगल की
शीतल पद जुग नमूँ उभैकर जोरिही, भद्दलपुर अवतरे अच्युत पद छोरिही। दिढरथ-तात विख्यात सुनन्दा - मायजी, चैत कृष्ण वसु गर्भ लिये सुखदायजी सुखदाय गर्भ कल्याण काजे आय सुरपति सब मिले, जननी सुसेवा राखि धनपति आप सुरलोकें चले।
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