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श्री पुष्पदन्त जिन-पूजा (रचयिता - श्री रामचन्द्र जी)
___ (आडिल्ल) तीन गुपति व्रत-पंच-महा पन-समिति ही, द्वादश-तप उपदेश सुधारे सन्त ही। पुष्पदन्तजिन पाय नमूं सिरनाय ही, आह्वानन विधि करूँ एक चित थाय ही।1। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजनेन्द्र! अब मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
(सोरठा) क्षीर-उदधि-सम नीर, भरि झारि त्रय-बार दे।
नसै जन्मृति-पीर, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
कृष्णागर घनसार, कुंकुम गन्ध मिलायकैं।
भव-आताप निवार, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
तन्दुल धवल अनूप, मुक्ताफल ससि-किरण-सम।
होइ मुक्ति को भूप, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।3।
कुसुम कल्पतरू लेय, मन मोहै चखि भावने।
वाण मनोज हरेय, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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