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खण्ड घिसत चरु सार, रसना-रंजन आनिये।
होय क्षुधा-निरवार, पुष्पदन्त जिनवर जजे। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
दीप रतनमय ज्योति, कंचन भाजन में धरें।
द्वै है ज्ञान उद्योत, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
अगर कपूर मिलाय, धूप दहन शुभ कीजिये।
अष्ट कर्म जरि जाय, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
उत्तम फल अति सार, नासा नेत्र सुहावने।
होय मुक्ति भरतार, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
अर्घ अनूप बनाय, रामचन्द्र वसु द्रव्यते।
होय मुकति को राय, पुष्पदन्त जिनवर जजे।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अनर्घ्य पद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक (दोहा) फागुन नवमी कृष्ण ही, आरण स्वर्ग विहाय।
रामादे उर अवतरे, जनँ गर्भ दिन ध्याय।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-नवम्यां गर्भमंगल-शोभिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
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