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तुम मोक्ष मार्ग दरसाव भान, भवसन्तति-द्रुम-जालन कृसान। तुम गुणगण को नहिं पार नाथ, हूँ करूँ विनतितुम जोरि हाथ।।7।
भव तारण विरद निहारि देव, हूँ सदा करूँ तुम चरण सेव। हो करुणानिधि जगपति अवार, शिव देहु अखै सुख को भण्डार॥8॥
(घत्ता) इह जिन गुणमाला, परम रसाला, रामचन्द्र जो कण्ठ धरै। द्वै सिद्ध निरंजन, भवभय भंजन, मोखरमा ततकाल वरै।। ऊँ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेनद्राय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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