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चैत्र शुकल एकादशी, केवल ज्ञान उपाय। कह्यो धर्म दुविधा मुदा, जजू चरण गुणगाय।।4।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ला-एकादश्यां ज्ञानभूषण-भूषिताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
एकादस सित चैत की, शेष करम हनि मोख। शिखर समेद थकी गये, जजू चरण गुणघोख।।5। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला-एकादश्यां मोक्षकल्याण-भूषिताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला (दोहा) सुमति सुमति दायक सदा, घायक कुमति कलेस। लायक शिव पद देन के, ज्ञायक लोक असेस।।
(पद्धडि छन्द) जय सुमति चरण दुति नख महान, जय करमभरम-तमहरण भान। जय मेघपिता चितपदम लाल, विकसावन कू रवि प्रात काल।।1।।
जय मात सुमंगला उदर सार, अवतार लयो त्रय ज्ञान धार। दुति कनक धनुष त्रियसै सु काय, चालीस लख्य पूरव सु आय।।2।।
जय वंश इक्ष्वाकु सिंगार देव, तजि सज धर्यो तप सुष्ट एव। जय पंच महाव्रत धरन धीर, जय पंच सुमति पालन सुबीर।।3।।
जय तीन गुप्ति वशिकरण सूर, महि ध्यान खड्ग चउ घाति चूर। केवल उपजे समवादि सार, रवि रचि चन्द्र करी थुति नाहि पार।।4।।
जय निराभरण भासुर अपार, निरआयुध निर्भय निरविकार। निरमोह निराकृत सर्वदोष, निरईह जगत हित धर्मघोष।।5।। जय कृपानाथ प्रतिपाल सृष्ट, जिनवांछितार्थ फलदाय इष्ट। जय भव्य भवार्णव तार देव, दुःकर्म-दाघ जल-वृष्टि एव।।6।।
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