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बादाम श्रीफल चारु पुंगी, मधुर मनहर ल्याइये। पद कमल जिनके पूजितै ही, मोक्षि के फल पाइये।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ऊँ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
नीर गन्ध सुगन्ध तन्दुल, पुष्प चरु अरु दीप ही। वर धूप फल लै अर्घ दीजै, रामचन्द्र अनूप ही।। श्रीसुमति जिनवर सुमति द्यौ, मुझ पूजिहूँ वसु भेवही।
मैं अनन्त काल अकाज भटक्यो, बिना तेरी तेवही।। ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक वैजयन्त विमान तजि, श्रावण दुतिया स्वेत। मंगला उर अवतार जिन, लयो जजू शिव हेत।।1।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ला-द्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
चैत शुकल एकादशी, जन्म महोत्सव इन्द। सनपन करि सुरगिर जजे, जसुमति गुणबृन्द।।2।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-एकादश्यां जन्मकल्याण-शोभिताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
नौमी सित वैशाख तप, धर्यो मोह रिपु चूर। नगन दिगम्बर वन बसे, जजू सुमति गुणभूरि।।3।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला-नवम्यां तपोभूषण-भूषिताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।3।
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